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"महर्षि दयानंद सरस्वती: स्वराज और स्वधर्म के अदृश्य महानायक"
महर्षि दयानंद सरस्वती जिन्हें लोग धार्मिक एवं सामाजिक प्रवर्त्तक के रूप में देखते हैं, बहुत कम लोग ही जानते हैं कि स्वराज्य एवं स्वधर्म के सही मायने में कोई सूत्रधार थे? तो वे महर्षि दयानंद सरस्वती ही थे।
नेपथ्य में रहकर महर्षि ने एक ऐसी क्रांति को जन्म दिया, जिसकी परिणीति लाल किले पर तिरंगे के रूप में हुई।
यह सब न तो इतनी सरलता से हुआ और न ही अचानक हुआ, पार्श्व में था वह साधू-समाज जिसने अपने पांडित्य और सूझ-बूझ से लोगों को एक सूत्र में पिरोकर उनका मार्गदर्शन किया।
आदि शंकराचार्य की विचारधारा से प्रेरित होकर स्वामी ओमानन्द, स्वामी पूर्णानन्द, स्वामी विरजानंद एवं स्वयं महर्षि दयानंद सरस्वती ने पूरे सनातन समाज को साथ लेकर स्वतंत्रता की अलख को जगाने का काम किया।
जब देश पराधीनता की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था तब महारानी विक्टोरिया ने लॉर्ड मैकाले की अंग्रेजी शिक्षा नीति को पूरे भारत में लागू कर दिया ताकि देशवासी मानसिक रूप से सदैव अंग्रेजी संस्कृति के पोषक रहें।
साधू-समाज इस षड्यंत्र को भली-भांति समझ गए और उन्होंने परंपरागत भारतीय गुरुकुल शिक्षा पद्धति को जीवित रखने का संकल्प लिया।
1857 की क्रांति की योजनाएं साधू-समाज ने अन्य क्रांतिकारियों जैसे तात्या टोपे, नाना साहेब, कुँवर सिंह, लक्ष्मीबाई आदि के साथ बनाई एवं हरिद्वार में कुंभ के अवसरों का लाभ उठाकर जन साधारण के अंदर स्वतंत्रता का मंत्र फूंकने का काम किया।
इसके अलावा 1857 की क्रान्ति के लिए जो रूपरेखा तैयार की गई, उसमें महर्षि दयानंद जी का अमूल्य योगदान था... हम कल्पना भी नहीं कर सकते कि संचार की कोई सुविधा न होते हुए भी पूरे देश में एक ही दिन, एक ही समय, क्रान्ति का भड़कना ... महज संयोग नहीं था.....इसके पीछे साधू-समाज का बहुत बड़ा योगदान था।
1857 की क्रांति विफल हुई, ऐसा कह कर प्रचारित किया गया। इसे इतिहास के पन्नों से गायब कर दिया कि भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी का मुकुट छिन जाना ही क्रांति की सफलता थी।
1857 की क्रांति के बाद देश की दशा एवं दिशा दोनों ही बदल गई।
दयानंद सरस्वती ने सर्वप्रथम लोगों को वेदों की ओर लौटने का आह्वान किया.... तत्पश्चात आर्य समाज की स्थापना कर विभिन्न धार्मिक मतभेदों को दूर करते हुए... स्वराज्य एवं स्वधर्म की नींव रखकर लोगों को स्वावलंबी बनाया और लोगों में स्वदेश, स्वभाषा और स्वसंस्कृति की भावना को जागृत किया... महर्षि दयानंद सरस्वती ने कालान्तर में अपने ऐसे शिष्यों को तैयार किया जिन्होंने (DAV) दयानंद एंग्लो विद्यालय, और दयानंद बालिका एंग्लो विद्यालय की स्थापना की जो आज बहुत प्रसिद्ध शिक्षण संस्थान हैं... और दूसरी ओर उनके अनुयायियों ने गुरुकुल और गुरुकुल विश्व विद्यालयों की स्थापना कर स्वराष्ट्र और स्व-संस्कृति से प्रेम करने वाले अनगिनत युवक-युवतियों को तैयार किया.... श्याम जी कृष्ण वर्मा, स्वामी श्रद्धानंद, लाला लाजपत राय, भाई परमानंद, वीर सावरकर आदि ने इस मशाल को आगे बढ़ाया, उनके बाद अन्य अनुयायिओं द्वारा यह कार्य आज भी निरंतर चल रहा है।
इतिहास के पन्नों से हमारी स्वतंत्रता के जिन सूत्रधारों एवं अमर बलिदानियों की गाथाओं को षड्यंत्र रचकर उन्हें गुमनाम कर दिया गया है, हमारे इस फिल्म का मुख्य उद्देश्य उन गुमनाम दिनों को उजागर करना है।
ये हमारी फिल्म का संक्षिप्त स्वरूप है... जिसके गर्भ में छिपा है स्वराज्य और स्वधर्म का वो रहस्य... जो बुद्धिजीवियों को सोचने पर विवश कर देगा।